Thursday 11 April 2013

जाट राजनीति को नायक की तलाश


उत्तरी भारत में इन दिनों जाट राजनीति उफान पर है। कांग्रेस,इनेलो,भाजपा मुख्य रूप से प्रभावी जाट चेहरों का तलाश कर इस वोट बैंक पर नजर टिकाए हुए है। दरअसल,हरियाणा,दिल्ली,पंजाब,राजस्थान एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों राजनीति का अपना अलग मुकाम है। एक ऐसी स्थिति में जब दिल्ली,राजस्थान एवं इसके बाद हरियाणा में चुनावी दौर शुरू होना है,ऐसे में सभी दल जुट गए हैं।

दरअसल,उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह,दिल्ली में साहिब सिंह वर्मा एवं राजस्थान में परसराम मदेरणा,नाथूराम मिर्घा के बाद जाट राजनीति वो उफान नहीं ले पाई। हरियाणा में ताऊ देवीलाल के बाद का जमाना देश जानता है। वैसे तो नटवर सिंह के मुकाम को भी भूला नहीं जा सकता।

हरियाणा भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने दूसरी एवं उनको प्रधानमंत्री से राष्ट्रीय कृषि उत्पादन समूह के अध्यक्ष तमगा मिलने के बाद वे प्रभावी हुए। राष्ट्रीय राजनीति में इनका संघर्ष जारी है। दिल्ली के आसपास सटे राज्यों में पांच करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले जाट समुदाय की राजनीति इस बार हरियाणा से उठी। यहां जाट नेता एवं पांच बार मुख्यमंत्री रहे ओमप्रकाश चौटाला को जनवरी में जेल जाना पड़ा। ताऊ देवीलाल परिवार के जुड़ाव के कारण यह मुद्दा देश में छाया।

इसी कड़ी में दूसरा कारण बने यहां भूपेन्द्र सिंह हुड्डा। दूसरी पारी खेल रहे हुड्डा ने हरियाणा के जाटों को ओबीसी कोटे में शामिल कर चौतरफा हलचल मचा दी। इस आंदोलन में यूपी व राजस्थान के जाट भी शरीक हुए थे। ऐसे में अब कद की लड़ाई है। जाट नेता किसान नेता के रूप में उभरना चाहते हैं।

जहांतक इनेलो का सवाल है,ताऊ देवीलाल के 2001 में निधन के बाद सत्ता के लिए संघर्षरत है। साथ ही अब चौटाला परिवार जेल प्रकरण में सहानुभूति की का सहारा लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित होना है। भाजपा से गठबंधन का इशारा भी नजर आ रहा है।

इस परिवार की तीसरी पीढ़ी मैदान में है। ताऊ देवीलाल के पोते दिग्विज चौटाला सभाओं में छा रहे हैं। फिलहाल उनका संघर्ष दादा की खोई प्रतिष्ठा वापस लाना है। इधर,कांग्रेस में वार इससे ज्यादा है। यहां नटवर सिंह जाट नेता के रूप में ख्याति लिए हुए थे। हरियाणा के जाट नेताओं ने यहां जगह बनाई है। हुड्डा परिवार की भी तीसरी पीढ़ी मैदान में है। हरियाणा को अलग बनाने का प्रस्ताव इंदिरा गांधी को देने वाले रणबीर सिंह हुड्डा के बाद मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा राष्ट्रीय किसान नेता के रूप में उभरे हैं।

साथ ही उनके सांसद बेटे दीपेन्द्र हुड्डा को राहुल गांधी ने अपने 23 सदस्यीय टीम में लेकर अलग उनका कद बढ़ाया है। वे कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली कमेटी में सदस्य हैं। इनको कद भी कांग्रेस के मुख्य दरबार में उभर चुका है। इसके पीछे कारण दिल्ली विवि छात्र संघ चुनाव एवं भूमिअधिग्रहण नीति के लिए यूपी चुनाव जैसे मामले दीपेन्द्र से जुड़ हैं। अब उनको राहुल दरबार में खुद को साबित करना होगा। कांगे्रस में ताउऊ देवीलाल परिवार से उनके बेटे चौधरी रणजीत सिंह दबे पांव दिल्ली में जड़े जमा रहे हैं।


इसके अलावा हरियाणाा से रणदीप सुरेजवाला जो वर्षों पहले यूथविंग के राष्ट्रीय स्तर पर कमान संभाल चुके हैं। इनका भी सोनिया दरबार में अपना कद है। चौधरी बीरेन्द्र ंिसंह ने राष्ट्रीय महासचिव बन कर कद बढ़ाया है। वे तीन राज्यों के प्रभारी के रूप में दो राज्य कांग्रेस की झोली में डाल चुके हैं। किरण चौधरी का प्रयास अपना अलग है। उनकी सांसद बेटी श्रुति चौधरी युवा दरबार में जड़े जमाने की प्रयास में हैं। बंसीलाल परिवार से ही रणबीर सिंह महेन्द्रा देश में बीसीसीआई के अध्यक्ष बन कर जाट नेता के रूप में देश भर में पहचान बना चुके हैं। उनके प्रयास अभी जारी हैं।

मुख्य संसदीय सचिव धर्मबीर का अपना प्रयास है। इस कड़ी में राजस्थान में भी कई नए जाट नेता उभर रहे हैं,यह किसी से छिपा नहीं है। भाजपा में राष्ट्रीय सचिव के पद पर पहुंच कर कैप्टन अभिमन्यु ने अपनी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।उनको नितिन गडकरी का काफी नजदीक माना जाता है। इस लंबी फेहरिस्त में मजेदार बात यह है कि केन्द्रीय मंत्रीमंडल में दूसरे दल के अजीत सिंह को छोड़ दे तो कांग्रेस से एकमात्र जाट सांसद राज्यमंत्री है,उनको भी पोर्टफोलियों के इंतजार करना पड़ा। एक जमाना था,जब जाट नेताओं के केबीनेट में तूंती बोलती थी।


इन सभी राज्यों के बीच हरियाणा के जाट नेताओं में नायक बनने की दौड़ ज्यादा है। जहां तक राजनीतिक पंडितों का सवाल है,2014 जाट नायक तय करेगा? राजनीतिक कद बढ़ा कर कौन नेता शीर्ष राजनीतिक पद पर आसीन होगा,यह बड़ी बात है। यह जंग प्रदेश के राजनीतिक मंचों पर भी देखी जा सकती है।

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