Wednesday 10 April 2013

पापा फिर से आ जाओ न

थाम के अंगुली मुझे चलाना, मंदिर की उन सीढियों पर ले जाना
गिरने से वो मुझे बचाना, और मेरे जरा सा थकने पर
झट से मुझे गोद में उठाना, पापा सब याद है न
मै आज भी डगमगा रहा हूँ, थामने को मुझे हाथ बढाओ न
पापा फिर से आ जाओ न, चोट लगी थी मेरे सर पर
शायद खून भी निकला था
पर दर्द उस चोट का
पापा चेहरे पर आपके दिखा था
मुझको हँसाने की खातिर
वो सीढियों पर हाथ मारना
और अपने रुमाल से मेरे आसुओ को पोछना
पापा मै अब भी रोता हूँ
आसू पोछने आ जाओ न
पापा फिर से आ जाओ न
छुप जाऊं फिर से सीने में, वो मजबूत सहारा बन के आओ न

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