Wednesday 17 April 2013

दुर्गाष्टमी

18 को दुर्गाष्टमी पर देवी पूजा के ये छोटे से मंत्र व उपाय पूरी करेंगे हर मुराद
चैत्र नवरात्रि में महाष्टमी तिथि (18 अप्रैल) शक्ति साधना की बड़ी शुभ घड़ी व रात्रि मानी जाती है। शास्त्रों के मुताबिक शक्ति शिव की वामांगी भी मानी गई हैं। इसलिए नवरात्रि की यह घड़ी वाम मार्गी साधना के लिए भी प्रसिद्ध है। शिव-शक्ति की कृपा जीवन के सारे दु:ख-बंधनों से मुक्त करने वाली मानी गई है। शिव और शक्ति एक-दूसरे के बिना शक्तिहीन भी माने जाते हैं। व्यावहारिक रूप से समझें तो सुख की कामना शक्ति संपन्नता के बिना संभव नहीं होती।

शिव की भांति शक्ति के भी कई रूप ऐसी ही सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने वाले माने गए हैं। इन स्वरूपों में भी नवदुर्गा की आठवीं शक्ति महागौरी की पूजा का महत्व है। 18 अप्रैल को अष्टमी तिथि पर मां महागौरी की पूजा के साथ ही गुरुवार का दुर्लभ योग भी है। क्योंकि महागौरी की पूजा खासतौर पर गुरु ग्रह के दोष शांत करने वाली भी मानी गई है। इसलिए इस दिन देवी के साथ गुरु पूजा, गुरु ग्रह के विपरीत योग या दशा से आ रही सुख-भाग्यबाधा दूर करने के साथ, विवाह व संतान से जुड़ी परेशानियां भी दूर कर देंगी। अगली स्लाइड्स पर जानिए देवी व गुरु पूजा के खास मंत्र व पूजा उपाय -
नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की पूजा की जाती है। श्वेतवर्णी तेज स्वरूपा मां का यह करूणामयी रूप है। इनकी उपासना भक्त को शांति, एकाग्रता, संतुलन, संयम रखने की प्रेरणा देकर अक्षय सुख देने वाली मानी गई है। इसी तरह गुरु बृहस्पति देव गुरु होकर ज्ञान व बुद्धि के स्वामी माने गए हैं।
अगली स्लाइड पर जानिए, किन मंत्रों व विधि से दुर्गाष्टमी पर देवी व गुरु पूजा हर भय, बाधा दूर कर बल, आत्मविश्वास देने वाली सिद्ध होगी -
सुबह व रात दोनो वक्त स्नान कर तन के साथ मन पवित्र रख देवालय में साफ वस्त्र पहनकर जाएं।

- दुर्गा या महागौरी की प्रतिमा का जल-दूध से अभिषेक करें।

- महाष्टमी होने से देवी पूजा के लिए लाल चंदन, लाल फूल, लाल चुनरी जरूर चढाएं। इसके अलावा महागौरी की पूजा गंध, अक्षत, मेंहदी, हल्दी, अबीर अर्पित कर यथोपचार विधि से कराएं। इस कार्य को किसी विद्वान ब्राह्मण से भी कराया जाना श्रेष्ठ होता है।

- महादेवी के पूर्ण स्वरूप की वस्त्र, अस्त्र, छत्र, चामर सहित पूजा करें।

- पूजा में देवी दुर्गा को चने-हलवा के साथ खासतौर पर नारियल चढ़ाएं।

- इसी तरह देवगुरु की प्रतिमा या तस्वीर की पूजा भी करें, जिसमें पीली पूजा सामग्री जैसे केसरिया चंदन, पीले अक्षत, पीले वस्त्र, चने की दाल, हल्दी चढ़ाएं। पीले पकवानों का भोग लगाएं।

- बाद महागौरी व दुर्गा का स्मरण करते हुए नीचे लिखे सरल मंत्र बोलें -

- ॐ महागौरी देव्यै नम:

इसी तरह से यह विशेष महागौरी मंत्र स्तुति भी करें -

सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।

ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥

सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।

डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्॥

त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।

वरदाचैतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्॥

- पूजा में देवी दुर्गा की प्रसन्नता के लिए देवी कवच, दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करना शुभ होगा।

- देवी पूजा और आरती, क्षमा-प्रार्थन के बाद यथाशक्ति कन्याओं और ब्राह्मणों को भोजन कराएं, पशुओं को चारा खिलाए, अन्न, वस्त्र का दान करें, गरीबों को आर्थिक मदद करें।

महाष्टमी पर दुर्गा पूजा दु:ख, संकट, भय और चिंता से मुक्त कर परिवार को सुख और समृद्ध कर देगी। इसी तरह गुरु पूजा भाग्य, विवाह, संतान, नौकरी या कारोबार से जुड़ी बाधाओं का अंत कर हर कामनापूर्ति करेगी।

Saturday 13 April 2013

दानवीर सेठ शिरोमणी चौधरी छाजूराम


 दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम लांबा के पूर्वज झूंझनू(राज.) के निकटवर्ती गांव गोठड़ा से आकर भिवानी जिले के ढ़ाणी माहू गांव में बसे थे। इनके दादा चौधरी मणीराम ढ़ाणी माहू को छोडक़र सरसा में जा बसे। लेकिन कुछ दिनों के बाद इनके पिता चौ. सालिगराम सन् 1860 में भिवानी जिले के अलखपुरा गांव में बस गए थे। यहीं पर चौधरी छाजूराम का जन्म सन 1861 में हुआ था। गांव अलखपुरा में आने पर इनका परिवार पूर्णतया खेतीबाड़ी पर निर्भर रहकर बड़ी कठिनाई से गुजर बसर कर रहा था।चौधरी छाजूराम ने अपने प्रारंभिक शिक्षा बवानीखेड़ा के स्कूल से प्राप्त की। मिडल शिक्षा भिवानी से पास करने के बाद उन्होंने रेवाड़ी से मैट्रिक की परीक्षा पास की। मेधावी छात्र होने के कारण इनको स्कूल में छात्रवृतियां मिलती रहीं लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण आगे की शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए। इनकी संस्$कृत, अंग्रेजी, महाजनी, हिंदी और उर्दू भाषाओं पर बहुत अच्छी पकड़ थी। लेकिन फिर भी रोजगार की तलाश में लगे रहे। उस समय भिवानी में एक बंगाली इंजीनियर एसएन रॉय साहब रहते थे, जिन्होंने अपने बच्चों की ट्यूशन पढ़ाने के लिए चौधरी छाजूराम को एक रूपया प्रति माह वेतन के हिसाब से रख लिया। जब सन् 1883 में ये बंगाली इंजीनियर अपने घर कलकत्ता चले गए तो बाद में चौधरी छाजूराम को भी कलकत्ता बुला लिया। जिस पर इन्होंने इधर-उधर से कलकत्ता के लिए किराए का जुगाड़ किया तथा इंजीनियर साहब के घर पहुंच गए। वहां भी उसी प्रकार से उनके बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे। साथ-साथ कलकत्ता में मारवाड़ी सेठों के पास आना-जाना शुरू हो गया, जिन्हें अंग्रेजी भाषा का बहुत कम ज्ञान था। लेकिन चौधरी छाजूराम ने उनकी व्यापार संबंधी अंग्रेजी चि_ियों के आदान-प्रदान में सहायता शुरू की, जिस पर मारवाड़ी सेठों ने इसके लिए मेहनताना देना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में चौधरी छाजूराम मारवाड़ी समाज में एक गुणी मुंशी तथा कुशल मास्टर के नामंं से विख्यात हो गए। इसी दौरान व्यापारी पत्र व्यवहार के कारण उन्होंने व्यापार संबंधी कुछ गुर भी सीख लिए जो उन्हें उस समय के एक महान व्यापारी बनाने में सहायक सिद्ध हुए। कुछ समय बाद उन्होंने बारदाना(पुरानी बोरियों) का एक छोटा सा व्यापार शुरू कर दिया। यह पुरानी बोरियों का क्रय विक्रय उनके लिए एक वरदान साबित हुआ, जिसके लाभ से उन्होंने धीरे-धीरे कलकत्ता में कंपनियों के शेयर खरीदने शुरू कर दिए। परिणाम स्वरूप उनकी गिनती भी व्यापारियों में होने लगी। ऐसा करते-करते एक दिन उन्होंने अपनी लग्र, परिश्रम व बुद्धि बल से कलकत्ता का जूट का व्यापार पूर्ण रूप से अपने हाथ में ले लिया और वह दिन आ गया जब लोग उन्हें जूट का बादशाह (जूट किंग) कहने लगे। और इसी कारण चौधरी छाजूराम को लोग एक सेठ की हैसियत से करोड़पतियों में जानने लगे। कलकत्ता की 24 बड़ी विदेशी कंपनियों के यह सबसे बड़े शेयर होल्डर थे। कुछ ही समय में वे 12 कंपनियों के निदेशक बन गए। उस समय इन कंपनियों से 16 लाख प्रति माह के हिसाब से लाभांश प्राप्त हो रहा था। इसलिए पंजाब नेशनल बैंक ने इनको अपना निदेशक रख लिया परंतु काम की अधिकता होने के कारण कुछ समय के बाद इन्होंने त्यागपत्र दे दिया। 24 कंपनियों के 75 प्रतिशत हिस्से सेठ चौधरी छाजूराम के थे और इनका करोड़ों रूपया बैंक में जमा था। याद रहे ये सेठ घनश्याम दास बिड़ला के घनिष्ट पारीवारिक मित्र थे और पीछे से राजस्थानी संबंध होने के कारण श्री बिड़ला के बच्चे इन्हेें नाना कहा करते थे। एक समय आ गया, जब सेठ छाजूराम की कलकत्ता में छह शानदार कोठियां थीं। इसके अलावा उन्होंने अलखपुरा व हांसी के पास शेखपुरा में भी दो शानदार महलनुमा कोठियां बनवाईं। गांव शेखपुरा, अलीपुर, कुम्हारों की ढ़ाणी, कागसर, मोठ, जामणी व अलखपुरा गांव में इनकी कई हजारों बीघा जमीन थी। पंजाब के खन्ना में रूई तथा मूंगफली का तेल निकालने के कारखाने थे। इन्होंने रोहतक में चौधरी छोटूराम के लिए नीली कोठी का निर्माण किया जो आज भी रोहतक के बीचों बीच उसी रंग में खड़ी है, जो वर्तमान में चौधरी वीरेंद्र सिंह डूमरखां के अधिकार में है। याद रहे, चौधरी छोटूराम को एफ.ए. के बाद शिक्षा दिलाने वाले चौधरी छाजूराम ही थे, जिसका संक्षेप में अर्थ है कि सेठ छाजूराम नहीं होते तो चौधरी छोटूराम दीनबंधु नहीं होते और यदि दीनबंधु नहीं होते तो आज किसानों के पास जमीन भी नहीं होती। यह भी याद रहे कि जब भारत में पहली बार सन् 1913 में रोल्स रायस कार आई तो चंद राजाओं को छोडक़र कलकत्ता में पहली कार उनके बड़े सुपुत्र सज्जन कुमार ही लाए थे, जिसकी कीमत उस समय एक लाख रूपए थी। सेठ छाजूराम का विवाह बाल्यावस्था में डोहका गांव जिला भिवानी में हुआ था लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही इनकी पत्नी का देहांत हैजे की बीमारी के कारण हो गया। दूसरा विवाह सन 1890 में भिवानी जिले के ही बिलावल गांव में रांगी खानदान में हुआ, जो दोनों ही गांव सांगवान खाप में आते हैं। इनके तीन पुत्र हुए, जिसमें सबसे बड़े सज्जन कुमार थे, जिनका युवावस्था में ही स्वर्गवास हो गया। उसके बाद दो लडक़े महेंद्र कुमार व प्रदुम्र कुमार थे। उनकी बड़ी बेटी सावित्री देवी मेरठ निवासी डॉ. नौनिहाल से ब्याही गई थी। एक पुत्र और एक पुत्री बाल्यावस्था में ही ईश्वर को प्यारे हो गए थे। सेठ चौधरी छाजूराम की दान क्षमता उस समय भारत में अग्रणी थी। कलकत्ता में रविन्द्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन विश्वविद्यालय से लाहौर के डीएवी कॉलेज तक उस समय ऐसी कोई संस्था नहीं थी, जिसमें सेठ छाजूराम ने दान न दिया हो। चाहे वह हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस हो, गुरूकुल कांगड़ी हो या फिर रोहतक या हिसार की जाट संस्थाएं। हिसार का वर्तमान जाट कॉलेज व सीएवी स्कूल आदि तो पूर्णत: उन्हीं द्वारा बनवाए गए। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेकों गौशालाएं और गुरूकुल बनवाए। महाराजा भरतपुर के आर्थिक संकट में इन्होंने दो लाख रूपए का अनुदान दिया तो प्रथम विश्वयुद्ध में गांधी जी के कहने पर इन्होंने अंग्रेजों के युद्ध फंड में एक लाख चालीस हजार रूपए का अनुदान दिया। ेउस समय के लगभग सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं को इन्होंने दान दिया था। महात्मा गांधी से लेकर पंडित मोतीलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, मदन मोहन मालवीय, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, राजगोपालाचार्य, कृपलानी, जितेंद्र मोहन सैन गुप्ता तथा श्रीमती नेली सेन गुप्ता आदि दान लेने वालों में शामिल थे। जब एक बार लाला लाजपत राय को कलकत्ता में पैसे की जरूरत पड़ी तो उन्होंने 200 रूपए की मांग सेठ चौधरी छाजूराम से की तो उन्होंने 200 रूपए की बजाय 2000 रूपए उदारतापूर्वक भेज दिए। इसके अतिेरिक्त कलकत्ता से लेकर पंजाब के बीच जब भी कोई काल पड़ा, सेठ जी ने दिल खोलकर पशुओं के चारे व इंसानों के अनाज के लिए कई बार योगदान देकर अनेकों जानें बचाईं। सेठ चौधरी छाजूराम की दान सूची बहुत बड़ी है, जिसको इस लेख में लिख पाना संभव नहीं है। लेेकिन सेठ चौधरी छाजूराम अक्सर कहा करते थे : मैं वह काम (व्यापार) कर रहा हूं, जो केभी किसी ने मेरी जाति में नहीं किया और जितना भी मैं दान देता हूं, ईश्वर मुझे उससे कई गुना बढ़ाकर लौटा देता है। जहां तक भिवानी कस्बे का प्रश्र है, सेठ चौधरी छोजूराम ने वर्ष 1911 में पांच लाख रूपए की लागत से अपनी स्वर्गीय बेटी की यादगार में लेडी हैली हॉस्पीटल बनवाया, जिस जगह पर आज चौधरी बंसीलाल सामान्य अस्पताल खड़ा है। इसी के साथ-साथ उन्होंने भिवानी में एक गौशाला और एक प्राईमरी स्कूल का भी निर्माण करवाया था। आज उसी गौशाला की जमीन पर भिवानी के बीचों-बीच गौशाला मार्केट बनी हुई है और उसी गौशाला की यादगार का एक गेट शेष है, जिस पर सेठ चौधरी छाजूराम व उनके बेटे सज्जन कुमार का नाम अंकित है। जब सन् 1928 में भयंकर अकाल पड़ा तो भिवानी शहर की जनता पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रही थी। जिस पर भिवानी तहसील के तहसीलदार घासीराम, पंडित नेकीराम शर्मा और श्री श्रीदत्त वैद्य कलकत्ता में सेठ छाजूराम के पास पहुंचे और भिवानी की व्यथा बतलाई तो सेठ छाजूराम ने उनको पानी की व्यवस्था के लिए कुएं व बावडिय़ां बनवाने के लिए तीन लाख रूपए दिए। लेकिन आज अफसोस है कि उस महान दानदाता का हिसार को छोडक़र कहीं भी स्मारक व मूर्ति नहीं लगी। सेठ छाजूराम केवल दानदाता ही नहीं थे, वे एक महान देशभक्त भी थे। जब 17 दिसंबर, 1928 को भगतसिंह ने अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की गोली मारकर हत्या की तो वे दुर्गा भाभी व उनके पुत्र को साथ लेकर पुलिस की आंखों में धूल झोंकते हुए रेलगाड़ी द्वारा लाहौर से कलकत्ता पहुंचे और कलकत्ता के रेलवे स्टेशन से सीधे सेठ छाजूराम की कोठी पर पहुंचे, जहां सेठ साहब की धर्मपत्नी वीरांगना लक्ष्मीदेवी ने उनका स्वागत किया और एक सप्ताह तक अपने हाथ से बना हुआ खाना खिलाया। उसके बाद दुर्गा भाभी अपने बच्चे को लेकर कहीं और चली गई, लेकिन भगतसिंह लगभग ढ़ाई महीने तक उसी कोठी की ऊ परी मंजिल पर रहे, जो उस समय ऐसी कल्पना करना भी संभव नहीं था। इससे स्पष्ट है कि वे एक महान देशभक्त भी थे(पुस्तक अमर शहीद भगत सिंह, लेखक विष्णु प्रभाकर)। इसमें कोई भी अंदेशा नहीं कि जो पांच हजार रूपए नेताजी सुभाष ने चौधरी साहब से कलकत्ता में चंदे के तौर पर लिए थे, उनका इस्तेमाल उन्होंने भारत से जर्मनी तथा बाद में जर्मनी से जापान जाने के लिए किया अर्थात ये पैसा देश की आजादी के लिए खर्च किया, जो एक और महानतम योगदान था। याद रहे, सेठ चौधरी छाजूराम चौधरी छोटूराम के कहने पर संयुक्त पंजाब में सन् 1927 में एम.एल.सी भी रहे लेकिन उनका मन कभी राजनीति में नहीं लगा। यह विवरण देना भी उचित होगा कि घासीराम सन् 1927 से 1932 तक पांच साल तक भिवानी के तहसीलदार रहे। इन्हीं के काल में उस समय भिवानी में जितने भी कार्य हुए, सभी इन्हीं की देख-रेख में हुए थे, जिसके लिए बाद में घासीराम को राय बहादुर का खिताब दिया गया, जो वर्तमान में झज्जर जिले के छुडानी गांव से धनखड़ गौत्री जाट थे। वर्तमान में उनके एक पौत्र मेजर जनरल राजेश्वर सिंह मिजोरम में तैनात हैं। राय बहादुर चौधरी घासीराम धनखड़ जी की यादगार को भी चौधरी छाजूराम की प्रतिमा के साथ अंकित किया जाएगा। सेठ छाजूराम का जीवन पूर्णतया आदर्शवादी, निष्कलंक, पे्ररक और अति श्रेष्ठ था तथा उनके जीवन से हमें यही प्रेरणा मिलती है कि : जननी जने तो भक्तजन, या दाता या शूर। नहीं तो जननी बांझ रहे, काहे गंवाए नूर। Like this page

Friday 12 April 2013

जाट युवाओ ....

आप कैसे पहचानेंगे कि आप देश के किस हिस्से में है.
1) दो आदमी लड़ रहे हैं, एक आदमी आता है, उन्हे देखता है और चला जाता है.
ये 'मुंबई' है.
2) दो आदमी लड़ रहे हैं, एक आदमी आता है उन्हें समझाने की कोशिश करता है, फ़लस्वरुप दोनो लड़ना छोड़ कर समझाने वाले को मारने लग जाते हैं.
ये 'दिल्ली' है.
3) दो आदमी लड़ रहे हैं, एक आदमी अपने घर से आवाज़ देता है,"मेरे घर के आगे मत लड़ो, कहीं और जाओ".
ये 'बंगलौर' है.
4) दो आदमी लड़ रहे हैं, पुरी भीड़ देखनेके लिये इकट्ठी हो जाये, और एक आदमी चाय की दुकान लगा दे.
ये 'यु.पी.' है.
5) दो आदमी लड़ रहे हैं, दोनो मोबाईल सेकॉल कर दोस्तो को बुलाते हैं, थोड़ी देर में 50 आदमी लड़ रहे हैं.
ये 'Haryana ' है.
6) दो आदमी लड़ रहे हैं, एक आदमी ढेर सारी बीयर ले आता है, तीनो एक साथ बीयर पीते हुए एक-दुसरे को गाली देते हैं.
ये 'गोवा' है.
7) दो आदमी लड़ रहे हैं, दो आदमी और आते हैं, वो आपस में बहस करने लगते हैं कि कौन सही है कौन गलत, देखते देखते भीड़ जमा हो जाती है, पुरी भीड़ बहस करती है, लड़ने वाले दोनो घसक लेते हैं.
ये 'कोलकाता' है.
8) दो आदमी लड़ रहे है, एक आदमी आता है और दोनो को गोली मार देता है.
ये 'वासेपुर' है|.
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.Community Organization
हमारा मकसद भारत के जाट युवाओ को संगठित करके एक मंच पर लाना है

किसानो के हित

आज मै नागौर जिला मुख्यालय पर गया।वहा किसानो की समस्यायों को लेकर तीन अलग-अलग नेताओ व् संगठनो ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन सोंपा।एक ज्ञापन देनेवालो का नेत्रत्व विजय भाई साहब कर रहे थे और दुसरे का हनुमान बेनीवाल।दोनों की मांग थी ओला गिरने से किसानो को जो नुकसान हुआ उसका मुवावजा दिया जाये।तीसरा ज्ञापन खैन गाँव के किसानो ने अम्बुजा सीमेंट फेक्ट्री के खिलाफ दिया।भाई साहब के पास सो -डेढ़ सो किसान थे ,बेनीवाल के पास भी डेढ़ सो -दो सो किसान थे और सो-डेढ़ सो किसान खैन गाँव वालो के पास थे।तीनो के पास छ सो-सात सो किसान थे तीनो ने अपने-अपने हितो की रक्ष। के लिए ज्ञापन दिए अगर किसान के हितो के लिए ज्ञापन देते तो तीनो मिलकर देते।किसान की ताकत का अहसास करवाते।किसानो की समस्यायों का समाधान होता।इस देश के किसान की समस्याये एनेक है लेकिन उसका समाधान एक है।किसान का हित अगर नेता चाहते है तो एक होना पड़ेगा नही तो ये किसानो के हित में दिए गये ज्ञापन मात्र राजनेतिक नाटक से ज्यादा कुछ नही है।मै हमेशा किसान और जाट के हितो को ध्यान में रखकर दिए जानेवाले ज्ञापनो में शामिल होकर गर्व मह्सुस करता हूँ मै इस बात की ऒर कभी ध्यान नही देता हूँ की ज्ञापन देनेवाला किस पार्टी का है।मै तो इसबात का ध्यान रखता हूँ की मै किसान और जाट जाति की भलाई के लिए कितना कर सकता हूँ

पाकिस्तानी हिंदू

आज पाकिस्तान में हिन्दुओ की जो दुर्दशा है उससे पूरा देश और पूरा संसार आज भलीभांति परिचित है | लेकिन उसके बाद भी भारत सरकार की तरफ से कोई सख्त कदम न उठाया जाना एक दुर्भाग्य का विषय है लेकिन इससे बड़ा दुर्भाग्य तो ये है की इसपर मनावाधिकारो की बाते करने वाले मौन है | कहा है मानवाधिकार ?

पाकिस्तान से आये 480 हिन्दु, जो की कुम्भ स्नान के लिए आये थे उन्होंने अपनी दुर्दशा मीडिया और अन्य लोगो के सामने जाहिर की | उनका कहना था कि देश विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान में उनके साथ गुलामों जैसा व्यवहार हो रहा है और आये दिन न केवल उन पर जुल्म, ज्यादती व हमले होते हैं बल्कि उनकी आंखों के सामने ही उनकी बहू बेटियों की इज्जत लूट ली जाती है. उन्होंने बताया कि बेटियों की इज्जत बचाने के लिए वह 10 से 12 वर्ष की उम्र में ही उनकी शादियां कर देते हैं.

पकिस्तान में हिन्दुओ पर निर्मम अत्याचार हो रहे है, उनकी चीख पुकार, उनके आसू, आहे, क्रंदन सुनने वाला कोई नहीं है | वही इसमें सदा से हिन्दुओ की सहायता व उनकी रक्षा करते रहे विश्व हिंदू परिषद ने सरकार से मांग की है पाकिस्तानी हिंदू जो भारत में रह रहे है उनको भारत की नागरिकता दी जानी चाहिए | इससे पहले भी विहिप ने अनेको पाकिस्तानी हिन्दुओ की सहायता की है और उन्हें मदद देने में तत्पर रहे है | अब बारी सरकार की है की वह क्या कदम उठाती है |

बांधनी कला

बांधनी कला भारत में प्रचलित बांधकर अथवा गांठ लगाकर रंगाई का तरीक़ा है। रेशमी अथवा सूती कपड़े के भागों को रंग के कुंड में डालने के पूर्व मोमयुक्त धागे से कसकर बांध दिया जाता है। बाद में धागे खोले जाने पर बंधे हुए भाग रंगहीन रह जाते हैं। यह तकनीक भारत के बहुत से भागों में प्रयोग की जाती है, लेकिन गुजरात व राजस्थान में यह बहुत लंबे समय से प्रयोग में रही है और आज भी राज्य इस तकनीक के बेहतरीन काम के लिए जाने जाते हैं। इस तकनीक के सुरक्षित नमूने 18वीं सदी से पहले के नहीं हैं, जिससे इसके प्रारंभिक इतिहास का पता लगाना मुश्किल हो गया है।
श्रमसाध्य प्रक्रिया

बांधनी एक श्रमसाध्य प्रक्रिया है और यह काम बहुधा युवा लड़कियों द्वारा किया जाता है, जो कपड़े पर निपुणता से कार्य करने के लिए लंबे नाखून रखती हैं। इसमें कपड़े को कई स्तरों पर मोड़ना, बांधना और रंगना शामिल है। अंतिम परिणाम लाल या नीले रंग की पृष्ठभूमि पर सफ़ेद अथवा पीली बिंदियों वाला वस्त्र होता है, ज्यामितीय आकृतियाँ सर्वाधिक लोकप्रिय हैं, लेकिन पशुओं, मानवीय आकृतियों, फूलों तथा रासलीला आदि दृश्यों को भी कई बार शामिल किया गया है।



आपनो देशी फ्रिज

मित्रों ठंडे पानी के लिये मटके काहाँ के प्रसिध्द हैं..?


रावण

रावण तो महा पातकी (दूसरे की स्त्री का अपहरण करने वाला) था। लेकिन रामायण में लिखा है कि उसे मोक्ष मिला। ऐसा क्यों?

प्रश्न बहुत सुंदर है। रावण महा पातकी था, यह बात तो ठीक है। लेकिन रामायण में एक और कहानी है, जिसमें इस प्रश्न का उत्तर मिलता है। जब राम-रावण की लड़ाई चल रही थी और रावण की हार हो रही थी, उस समय रावण ने शिव से प्रार्थना की - हे प्रभु बचाओ, मैं मर रहा हूं। मगर शिव ने कुछ नहीं किया।
वहीं भगवान शिव के साथ माता पार्वती भी विराजमान थीं। उन्होंने कहा, रावण तुम्हारा भक्त है, वह मर रहा है तो क्या तुम उसे बचाओगे नहीं? शिव जी ने कहा, नहीं, रावण महा पातकी है। मृत्यु ही उसकी सजा है। वैसे भी, मरने के बाद जाएगा कहां? शिव के ही साथ तो रहेगा। इस ब्रह्मांड के बाहर तो जा नहीं सकता। मगर लौकिक जगत में उसकी सजा है मृत्यु।

पार्वती ने कहा, नहीं-नहीं, वह महा पातकी नहीं है, वह है अति पातकी। उन दिनों दूसरे की स्त्री का अपहरण करने वाला अति पातकी होता था, क्योंकि सामाजिक मान्यता यह थी कि इस तरह के अपहरण से स्त्री को स्थायी प्रकृति की क्षति होती है। इसके प्रायश्चित का कोई उपाय नहीं है, इसलिए वह अति पातकी है। इसीलिए पार्वती का प्रश्न था कि रावण महा पातकी क्यों, अति पातकी क्यों नहीं?

शिव ने समझाया, रावण ने जो चोरी की, अपहरण किया, वह अगर चोर के रूप में आता तो वह अति पातकी होता। लेकिन वह आया साधु के रूप में। उसने एक कुल नारी का अपहरण किया। तो भविष्य में कोई कुल नारी किसी साधु का विश्वास नहीं करेगी। कोई साधु अगर आकर कहे, भिक्षा दो, तो कोई भी उस पर भरोसा नहीं करेगी। सोचेगी, हो सकता है यह रावण की ही तरह कोई न हो।

रावण ने ऐसा कुकर्म किया, जिसका असर भविष्य में भी साधुओं पर पड़ता रहेगा। तो रावण के कर्म का प्रभाव रेकरिंग नेचर का हो गया। इसलिए रावण महा पातकी है। इस पर पार्वती ने कहा, फिर भी उसे बचाने का एक प्रयास तो करना चाहिए। शिव ने कहा, तुम कोशिश कर सकती हो, मगर बचा नहीं सकोगी। तो आखिर जो होने को था, वह हुआ।

रावण का क्या काम था? सब कुछ छोड़ कर केवल राम की भावना लेना। राज चला गया, लंकापुरी जल गई। बेटा, पोता सब मर गए, सब खत्म हो गया, तो भी छोड़ा नहीं राम की भावना। शास्त्र में कहा गया है, तुम श्रद्धा के साथ परमात्मा की भावना लो, तो बहुत अच्छा है। पर अवहेलना के साथ भी परमात्मा की भावना लेते हो, तो भी मन तो वहीं होगा परमात्मा के पास। इसीलिए रावण मरता है, तो भी उसे मोक्ष मिल जाता है।

चुनाव

चुनाव क्या है/...............
चुनाव के बारे में आम धारणा यह है ,चुनाव यानि चूनाव अर्थात चोंधा देना ,ताकि कुछ भी स्पस्ट न हो पाए ,आप गौर करें मुदों को भुलाने चुनावों से पहले एक सर्कस जैसा माहोल बनाया जारहा है जहां हाथी घोडा बन्दर और जोकर आदि उछल कूद मचाने लगे हैं,मुदा क्या है पता नहीं ,कोए तलवार दिखा रहाह कोए तीर ताने खड़ा है,क्या संदेस देना चाहते हैं ,हमारे महामहिम ,अगर इनकी देखा देखी ,किसानो ने जेली लाठी उठाली, आदिवासियों ने तीर तानलीकमान तो फिर कानून क्या करेगा जब नेताओं की ही
कानून कोईपूंछ नहीं काट सकता ,
वैसे भी चुनावअर्थात जनमत अब अपनी अहमियत खो चूका है,एह तो खालीनाटक है,हमारे वोट के बाद भी प्रधान मंत्री व् सरकार तो वो बनेगी जो कंम्पनी और अमेरिका चाहेगी मनमोहनजी को किसने कब वोट दिया था हमारे बहुत सारे नेता व् लीडर खड़े होकर वार्ड पंच का चुनाव भी न जीत पाएंगे जो गणमान्य हैं,उन्होंने गण से मनेयता कब ले रखी है चुनाव के बाद मर्जी का मंदिरबना खड़े हो जाते हैं कि हमें येही जनादेस है

गुल्ली-डंडा

कुछ साल पहले तक अक्सर बच्चे हाथ में एक डंडा और गुल्ली लेकर खेलते हुए नजर आते थे, किंतु समय के साथ-साथ यह खेल लगभग लुप्त होने के कगार पर आ गया है। इस खेल की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि इसमें खेल सामग्री के नाम पर कुछ भी खर्चे वाली बात नहीं है, बस इसमें केवल एक  2-3 फीट लकड़ी का डंडा और एक गुल्ली जिसके दोनों किनारों को नुकीला कर दिया जाता है, जिससे उस पर डंडे से मारने पर गुल्ली उछल पड़े। इस खेल में खिलाड़ियों की संख्या कितनी भी हो सकती है, 2 , 4, 10 या इससे भी अधिक।
गुल्ली और डंडा

खेल के नियम

खेल के नियम भी बिल्कुल आसान हैं,  खेल शुरू करने से पहले ज़मीन पर एक 2 इंच गहरा और 4 इंच लम्बा गडढ़ा खोदा जाता है, एक खिलाड़ी उस गड्ढ़े पर गिल्ली को टिका कर ज़ोर से डंडे के द्वारा दूर फेंकता है, और दूसरे खिलाड़ी उसे लपकने के लिए तैयार रहते हैं, अगर गिल्ली लपक ली जाती है तो वो खिलाड़ी बाहर हो जाता है और यदि गिल्ली ज़मीन पर गिर जाती है तो गिल्ली उठा कर  डंडे को मारा जाता है जो कि गड्ढ़े के पर उस खिलाड़ी द्वारा रख दिया जाता है, अगर दूसरी टीम ने डंडे को निशाना बना दिया तो भी खिलाड़ी बाहर हो जाता है और अगर नहीं तो अब वह खिलाड़ी अपना डंडा लेकर गिल्ली के एक सिरे को डंडे से मारा जाता है और गिल्ली हवा में उठते ही डंडे की सहायता से दूर से दूर भेजी जाती है। जिसकी गिल्ली जितनी दूर जाती है, वही खेल में जीत जाता है। उस दूरी से गड्ढ़े की दूरी को डंडे द्वारा मापा जाता है और उतने ही अंक उस टीम को मिलती है। इस प्रकार से ये खेल खेला जाता है और हारने वाली टीम को शर्त के अनुसार मुक्के या धौल जमाये जाते हैं। यह खेल प्रति व्यक्ति या टीम के आथ खेला जाता है। इसमे कोई भी हार पराजय की भावना नहीं होती है बिल्कुल ही खेल भावना के खेला जाने वाला ये खेल आज लगभग लुप्त हो रहा है।

सावधानी

इस खेल में आँख में चोट लगने की संभावना रहती है। अत: यह खेल बहुत ही सावधानीपूर्वक खेलना चाहिए।

हिंगलाज तनोट राय (आयड़ माता) -घटना

माता के चमत्कार के आगे पाकिस्तानी गोले भी हो गए थे फ़ुस्स...

सन 1965, जब भारत और पाकिस्तान के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था तब राजस्थान की सीमा पर एक स्थान ऐसा भी था जो यह साबित कर रहा था कि दुनिया में ईश्वर नाम की कोई चीज भी होती है।उस समय भारतीय सेना ने ऐसे चमत्कार देखे कि वह स्थान हमेशा के लिए सैनिकों के लिए आस्था का केंद्र बन गया।

हम बात कर रहे हैं पाकिस्तानी सीमा से सटे हुए तनोट की, जहां माता हिंगलाज तनोट राय (आयड़ माता) के रूप में विराजमान है।यह स्थान जैसलमेर से लगभग 130 किमी की दूरी पर स्थित है।तनोट को स्थापित करने के श्रेय भाटी राजपूत राजा तणुराव को जाता है।

विक्रम संवत 828 में तणुराव ने यहां मंदिर बनवाया और तनोट माता की मूर्ती की स्थापना की।भाटी वंश के राजे-महाराजे और जैसलमेर के आसपास के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी तनोट माता के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा रखते आये हैं।कालांतर में भाटी राजाओं की राजधानी को तनोट से हटाकर जैसलमेर कर दिया गया लेकिन तनोट माता का वह मंदिर आज भी वहीं स्थित है।

वैसे तो जैसलमेर के साथ-साथ आस-पास के लोगों के लिए यह मंदिर हमेशा से ही आस्था का केंद्र रहा है लेकिन 1965 में तनोट माता के चमत्कार ने स्थानीय लोगों के साथ-साथ भारतीय सेना के दिलों में भी अपनी आस्था के बीज बो दिए।

Thursday 11 April 2013

ब्रह्मचारिणी

  ब्रह्मचारिणी-
माँ दुर्गा का दूसरा रूप
ब्रह्मचारिणी है। माँ दुर्गा का यह रूप
भक्तों और साधकों को अनंत कोटि फल
प्रदान करने वाली है। इनकी उपासना से
तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम
की भावना जागृत होती है।
.
मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप
ब्रह्मचारिणी का है। भगवान शंकर
को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर
तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के
कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात्
ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।
यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है।
मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और
सिद्धों को अनंत फल देने वाला है।
इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य,
सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु
मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप
की चारिणी यानी तप का आचरण करने
वाली। देवी का यह रूप पूर्ण
ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस
देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और
बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।
पूर्व जन्म में इस देवी ने हिमालय के घर
पुत्री रूप में जन्म लिया था और
नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर
को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर
तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के
कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्
ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित
किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने
केवल फल-फूल खाकर बिताए और
सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक
पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले
आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट
सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व
पत्र खाए और भगवान शंकर
की आराधना करती रहीं। इसके बाद
तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र
खाना भी छोड़ दिए। कई हजार
वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर
तपस्या करती रहीं।
पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण
ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर
एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि,
सिद्धगण, मुनि सभी ने
ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व
पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और
कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह
की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से
ही संभव थी।
तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और
भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप
में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर
लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें
बुलाने आ रहे हैं।
दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के
इसी स्वरूप की उपासना की जाती है।
इस देवी की कथा का सार यह है
कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन
विचलित नहीं होना चाहिए।
मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व
सिद्धि प्राप्त होती है।

संजय गांधी को लेकर एक बड़ा खुलासा

विकिलीक्स ने संजय गांधी को लेकर एक
बड़ा खुलासा
►माँ के नाम पे कलंक थी इंदिरा :▬
अपनी राजनैतिक नुक्षान के चलते , खुद के
ही बेटे संजय गांधी को मरवा ने की थी 3 बार
कोशिश .... और आखरी सफल हो गई !
♂ संजय गांधी को तीन बार जान से मारने की हुई
थी कोशिश!
▬ विकिलीक्स ने संजय गांधी को लेकर एक
बड़ा खुलासा किया है। विकिलीक्स का दावा है
कि कांग्रेस नेता संजय गांधी को तीन बार जान
से मारने की कोशिश की गई थी। एक बार उन पर
तब हमले की कोशिश की गई जब वो उत्तर
प्रदेश के दौरे पर थे, इस हमले के लिए
अत्याधुनिक राइफल का इस्तेमाल
किया गया था।
▬ विकिलीक्स ने अमेरिकी केबल के हवाले से ये
खुलासा किया है। विकिलीक्स के मुताबिक
सितंबर 1976 में भेजी गई अमेरिकी दूतावास
की रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त
प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के बेटे को अज्ञात
हमलावर ने निशाना बनाने की कोशिश
की थी लेकिन ये कोशिश नाकाम रही।
▬ संजय गांधी की कार्यशैली से इंदिरा सरकार
को बड़ी बदनामी झेलनी पड़ी थी , जैसे
की जबर्दस्ती नसबंदी करवाना , और जब मौत
हुई तो विमान एक्सिडन्त मे अपने बेटे की लाश
की जगह , उसके पास रहे स्विस एकाउंट के
नंबर , और चाबिया ढूंढने भेजी थी एक
स्पेशियल टिम !
▬ और उसी बेटे के मौत
की नौटंकी की सहानुभूति से दोबारा , सत्ता पे
आई थी इंदिरा !
▬ लेकिन उसको भी इंपोर्टेड बहू ने
उड़वा दिया .... जब इंदिरा की हत्या हुई तब
सबसे पहेल और करीब सोनिया ही थी ...
बाकी एक सहायक और दो वीर शहीद शिख ....
इंदिरा वध करने वाले इंदिरा के बॉडी गार्ड !
▬ इंदिरा का पत्ता साफ होने के बाद ..... राजीव
भी कहाँ बच पाया ?
▬ ये परिवार एक ऐसा परिवार है की सत्ता के
लिए ..... मोघलो की परंपरा कायम
रक्खी जिसमे ... राज गद्दी के लिए बेटा बाप
का और भाई भाई का कत्ल कर
देता या करवा देता !
▬ ऐसे परिवार की गुलाम कॉंग्रेस , फिर खुद
कैसी होगी .... ये सोचना मैं उन लोगो पे छोडता हूँ
जो अब भी चंपलूसी से बाज नहीं आते ..... और
अपनी जीवहा से .... उनकी बायोलोजिकल
गंदगी और उत्सर्ग द्राव्य साफ करते रहते है ...
चाट चाट के !
§▬ ►ना देश बड़ा ना बेटा
ऐसी बेशर्म थी नेता
अपने बेटेकी लाश नहीं पर स्विस बेंक का
चाहिए था डेटा !

राजस्थानी मान्यता

केरल के 10 एवं राजस्थान के 25 सांसद लोकसभा में है परन्तु आजादी के बाद केरल नै देश को जितने आई.ए.एस दिए उसके 10 प्रतिसत भी राजस्थान नहीं दे पाया उसका कारण हमारी भाषा को संवेधानिक मान्यता नहीं होना है परन्तु गोरवशाली राजस्थान के गैर जिम्मेदार सांसदों को नहीं लगता की इसके लिए मिलकर संसद, सरकार को राजस्थानी मान्यता के लिए मजबूर करे????

क्या आपको पता है

क्या आपको पता है इतिहास में २ सितम्बर 1752 का दिन महत्वपूर्ण है क्योंकि उसी दिन ब्रिटिश असेम्बली में ''केलेंडर सुधार अध्यादेश'' बिल पास हुआ जिसके तहत २ सितम्बर के बाद अगला दिन १४ सितम्बर होगा यानि पूरे ११ दिन गायब| क्योंकि ब्रिटिश (ग्रेगोरियन) केलेंडर में गणनाओं में गलतियाँ होने लगी थी , क्या ये एस्ट्रोनॉमी साइंस के विरुद्ध नहीं है , कई बार इस केलेंडर को चलाये रखने के लिए दुनिया की घडिया कुछेक सेकंड के लिए रोक दी गई
दूसरी और विक्रम संवत केलेंडर अभी तक सटीक रहा है और आगे भी कोई परिवर्तन की गुंजाईस नहीं है !
'में ये नहीं कहता की दुनिया विक्रम संवत को अपना ले और नाही में इसे एक हिंदूवादी की तरह प्रस्तुत कर रहा हूँ लेकिन दुनिया के सभी केलेंडरो की तुलना में विक्रम संवत ज्यादा सटीक है हमें इसे पूरा सम्मान देना चाहिए ''

जाट राजनीति को नायक की तलाश


उत्तरी भारत में इन दिनों जाट राजनीति उफान पर है। कांग्रेस,इनेलो,भाजपा मुख्य रूप से प्रभावी जाट चेहरों का तलाश कर इस वोट बैंक पर नजर टिकाए हुए है। दरअसल,हरियाणा,दिल्ली,पंजाब,राजस्थान एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों राजनीति का अपना अलग मुकाम है। एक ऐसी स्थिति में जब दिल्ली,राजस्थान एवं इसके बाद हरियाणा में चुनावी दौर शुरू होना है,ऐसे में सभी दल जुट गए हैं।

दरअसल,उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह,दिल्ली में साहिब सिंह वर्मा एवं राजस्थान में परसराम मदेरणा,नाथूराम मिर्घा के बाद जाट राजनीति वो उफान नहीं ले पाई। हरियाणा में ताऊ देवीलाल के बाद का जमाना देश जानता है। वैसे तो नटवर सिंह के मुकाम को भी भूला नहीं जा सकता।

हरियाणा भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने दूसरी एवं उनको प्रधानमंत्री से राष्ट्रीय कृषि उत्पादन समूह के अध्यक्ष तमगा मिलने के बाद वे प्रभावी हुए। राष्ट्रीय राजनीति में इनका संघर्ष जारी है। दिल्ली के आसपास सटे राज्यों में पांच करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले जाट समुदाय की राजनीति इस बार हरियाणा से उठी। यहां जाट नेता एवं पांच बार मुख्यमंत्री रहे ओमप्रकाश चौटाला को जनवरी में जेल जाना पड़ा। ताऊ देवीलाल परिवार के जुड़ाव के कारण यह मुद्दा देश में छाया।

इसी कड़ी में दूसरा कारण बने यहां भूपेन्द्र सिंह हुड्डा। दूसरी पारी खेल रहे हुड्डा ने हरियाणा के जाटों को ओबीसी कोटे में शामिल कर चौतरफा हलचल मचा दी। इस आंदोलन में यूपी व राजस्थान के जाट भी शरीक हुए थे। ऐसे में अब कद की लड़ाई है। जाट नेता किसान नेता के रूप में उभरना चाहते हैं।

जहांतक इनेलो का सवाल है,ताऊ देवीलाल के 2001 में निधन के बाद सत्ता के लिए संघर्षरत है। साथ ही अब चौटाला परिवार जेल प्रकरण में सहानुभूति की का सहारा लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित होना है। भाजपा से गठबंधन का इशारा भी नजर आ रहा है।

इस परिवार की तीसरी पीढ़ी मैदान में है। ताऊ देवीलाल के पोते दिग्विज चौटाला सभाओं में छा रहे हैं। फिलहाल उनका संघर्ष दादा की खोई प्रतिष्ठा वापस लाना है। इधर,कांग्रेस में वार इससे ज्यादा है। यहां नटवर सिंह जाट नेता के रूप में ख्याति लिए हुए थे। हरियाणा के जाट नेताओं ने यहां जगह बनाई है। हुड्डा परिवार की भी तीसरी पीढ़ी मैदान में है। हरियाणा को अलग बनाने का प्रस्ताव इंदिरा गांधी को देने वाले रणबीर सिंह हुड्डा के बाद मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा राष्ट्रीय किसान नेता के रूप में उभरे हैं।

साथ ही उनके सांसद बेटे दीपेन्द्र हुड्डा को राहुल गांधी ने अपने 23 सदस्यीय टीम में लेकर अलग उनका कद बढ़ाया है। वे कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली कमेटी में सदस्य हैं। इनको कद भी कांग्रेस के मुख्य दरबार में उभर चुका है। इसके पीछे कारण दिल्ली विवि छात्र संघ चुनाव एवं भूमिअधिग्रहण नीति के लिए यूपी चुनाव जैसे मामले दीपेन्द्र से जुड़ हैं। अब उनको राहुल दरबार में खुद को साबित करना होगा। कांगे्रस में ताउऊ देवीलाल परिवार से उनके बेटे चौधरी रणजीत सिंह दबे पांव दिल्ली में जड़े जमा रहे हैं।


इसके अलावा हरियाणाा से रणदीप सुरेजवाला जो वर्षों पहले यूथविंग के राष्ट्रीय स्तर पर कमान संभाल चुके हैं। इनका भी सोनिया दरबार में अपना कद है। चौधरी बीरेन्द्र ंिसंह ने राष्ट्रीय महासचिव बन कर कद बढ़ाया है। वे तीन राज्यों के प्रभारी के रूप में दो राज्य कांग्रेस की झोली में डाल चुके हैं। किरण चौधरी का प्रयास अपना अलग है। उनकी सांसद बेटी श्रुति चौधरी युवा दरबार में जड़े जमाने की प्रयास में हैं। बंसीलाल परिवार से ही रणबीर सिंह महेन्द्रा देश में बीसीसीआई के अध्यक्ष बन कर जाट नेता के रूप में देश भर में पहचान बना चुके हैं। उनके प्रयास अभी जारी हैं।

मुख्य संसदीय सचिव धर्मबीर का अपना प्रयास है। इस कड़ी में राजस्थान में भी कई नए जाट नेता उभर रहे हैं,यह किसी से छिपा नहीं है। भाजपा में राष्ट्रीय सचिव के पद पर पहुंच कर कैप्टन अभिमन्यु ने अपनी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।उनको नितिन गडकरी का काफी नजदीक माना जाता है। इस लंबी फेहरिस्त में मजेदार बात यह है कि केन्द्रीय मंत्रीमंडल में दूसरे दल के अजीत सिंह को छोड़ दे तो कांग्रेस से एकमात्र जाट सांसद राज्यमंत्री है,उनको भी पोर्टफोलियों के इंतजार करना पड़ा। एक जमाना था,जब जाट नेताओं के केबीनेट में तूंती बोलती थी।


इन सभी राज्यों के बीच हरियाणा के जाट नेताओं में नायक बनने की दौड़ ज्यादा है। जहां तक राजनीतिक पंडितों का सवाल है,2014 जाट नायक तय करेगा? राजनीतिक कद बढ़ा कर कौन नेता शीर्ष राजनीतिक पद पर आसीन होगा,यह बड़ी बात है। यह जंग प्रदेश के राजनीतिक मंचों पर भी देखी जा सकती है।

गांधी या गोडसे..

देश को गुलामी की बेडियों से आज़ादी दिलाने वाले सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह जैसे सन्मार्गों के जरिए अपनी सही बात मनवाने का रास्ता दिखाने वाले गांधी क्या आज अंप्रासंगिक हो गए हैं? आज की युवा पीढी के लिए शायद हां…जी हां आज के युवाओं को ज़रा सा टटोलिये अपने अधकचरे ज्ञान के चलते उनके लिए गांधीजी एक महापुरुष ना होकर सिर्फ एक मज़ाक या कोसने वाले पात्र बन कर रह गए हैं…आज के युवा को तो गांधी की फोटो तो नोट पर भी नहीं भाती..उनका कहना है कि गांधी को इतनी इज्जत क्यों? सोशल नेटवर्किंग साईटों पर एक निगाह डालिए देश की वर्तमान सरकार का मखौल उड़ाते कार्टून्स के साथे गांधीजी के मज़ाकिया कार्टून्स भी मिल जाएंगे।
 आज हमारे पास बोलने की आजादी है, अपने विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी है, कहीं भी खड़े होकर किसी के लिए भी अपने शब्द बाण छोड़ने का खुल्ला लाइसेंस है। और शायद यही वजह है कि आज ऐसे कई लोग हैं जो देश के सबसे बड़े नेता और देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को देश-विरोधी बताते हैं। तथाकथित देशप्रेमियों और राष्ट्रवादियों की नजर में बापू की वजह से देश का विभाजन हुआ था। देश में फैली अशांति, बंटवारे और कश्मीर तक के लिए लोग गांधी को जिम्मेदार मानते हैं। देश के लिए न जानें कितने डंडे खाने का गांधीजी को यह फल मिला कि आज उन्हे लोगों की नफरत और दुत्कार का सामना करना पड़ रहा है…सौ के नोट पर गांधीजी तो सबको चाहिए लेकिम मूल जीवन में गांधी जी के बताए रास्ते पर चलना तो दूर लोग गांधी जी की परछाई से भी दूर रहना पसंद करते हैं।
सवाल ये की युवाओं की ऐसी सोच आखिर क्यों क्या गांधी वर्तमान में आप्रसंगिक हो गए हैं मुझ से पूछा जाए तो गांधीजी की प्रासंगिकता पहले की अपेक्षा बढी है और हर युग में उनके विचारों और सिद्धांतो की ज़रूरत और प्रासंगिकता उतनी ही रहेगी जितने बीते दशकों में। युवाओं में गांधी के प्रति घृणा का कारण आज के युग में गांधी नहीं अपितु उनके विचारों और सिद्धान्तों की अस्वीकार्यता है। आज युवाओं के पास ना कोई आदर्श है और ना ही कोई सही विचार जो उन्हे सही मार्ग दिखा सके। आज की पीढी के पास बैठकर सत्य,अहिंसा,सत्याग्रह और उपवास जैसे साधनों की चर्चा करना भी शायद बेमानी लगे। आज की पीढी के लिए गांधी के आदर्श अप्रासंगिक हो गए हैं

छाछ


छाछ
मूलत:मक्खन को मथकर वसा निकालने के बाद बचे हुये तरल पदार्थ को छाछ कहते हैं। आजकल इसका आशय पतला किए गए और मथे हुए दही से है, जिसका इस्तेमाल समूचे दक्षिण एशिया में एक शीतल पेय पदार्थ के रूप में किया जाता है।
गुण 
  मलाई उतरे हुए दूध की ही तरह संवर्द्धित छाछ मुख्य रूप से पानी (लगभग 90 प्रतिशत), दुग्ध शर्करा लैक्टोज़ (लगभग 5 प्रतिशत) और प्रोटीन केसीन (लगभग 3प्रतिशत) से बनी होती है।
    कम वसा के दूध की बनी हुई छाछ में भी घी अल्प मात्रा (2 प्रतिशत) में होता है। कम वसा और वसारहित दोनों प्रकार की छाछ में जीवाणु कुछ लैक्टोज़ को लैक्टिक अम्ल में बदलते हैं, जो दूध को खट्टा सा स्वाद दे देता है और लैक्टोज़ के पाचन में मदद करता है, समझा जाता है कि जीवित जीवाणु की अधिक संख्या अन्य स्वास्थ्यवर्द्धक और पाचन संबंधी लाभ भी देती है ।
    पश्चिम में पुडिंग और आइसक्रीम जैसे ठंडे मीठे व्यंजन उद्योग में उपयोग के लिए छाछ को गाढ़ा किया या सुखाया जाता है।
    विभिन्न भारतीय भाषाओं में इसे मठ्ठा और मोरू भी कहा जाता है।
    छाछ प्रायः गाय, भैस के दूध से जमी दही को फेटकर बनता है।
    ताजा मट्ठा पीने से शरीर में पोषक तत्वों की पूर्ति होती है, तथा यह शरीर के लिए स्वास्थ्य वर्धक है।

नवरात्रि




नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है नौ रातें । यह पर्व साल में चार बार आता है।चैत्र,आषाढ,अश्विन,पोषप्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातो में तीन देवियों - महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वतीया सरस्वतीकि तथा दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं ।
नौ देवियाँ है :-
श्री शैलपुत्री
श्री ब्रह्मचारिणी
श्री चंद्रघंटा
श्री कुष्मांडा
श्री स्कंदमाता
श्री कात्यायनी
श्री कालरात्रि
श्री महागौरी
श्री सिद्धिदात्री
शक्ति की उपासना का पर्व शारदेय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की । तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं । नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
नवदुर्गा और दस महाविधाओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविधाएँ अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।
प्रमुख कथा

लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग 'कमलनयन नवकंच लोचन' कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्र में जयादेवी... भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'करिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।
अन्य कथाएं

इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। और प्रत्याशित प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गए। महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा है।[2] तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी। इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर-वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं।
पूजन विधि
चौमासे में जो कार्य स्थगित किए गए होते हैं, उनके आरंभ के लिए साधन इसी दिन से जुटाए जाते हैं। क्षत्रियों का यह बहुत बड़ा पर्व है। इस दिन ब्राह्मण सरस्वती-पूजन तथा क्षत्रिय शस्त्र-पूजन आरंभ करते हैं। विजयादशमी या दशहरा एक राष्ट्रीय पर्व है। अर्थात आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय होने के समय 'विजयकाल' रहता है। यह सभी कार्यों को सिद्ध करता है। आश्विन शुक्ल दशमी पूर्वविद्धा निषिद्ध, परविद्धा शुद्ध और श्रवण नक्षत्रयुक्त सूर्योदयव्यापिनी सर्वश्रेष्ठ होती है। अपराह्न काल, श्रवण नक्षत्र तथा दशमी का प्रारंभ विजय यात्रा का मुहूर्त माना गया है। दुर्गा-विसर्जन, अपराजिता पूजन, विजय-प्रयाग, शमी पूजन तथा नवरात्र-पारण इस पर्व के महान कर्म हैं। इस दिन संध्या के समय नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है। क्षत्रिय/राजपूतों इस दिन प्रातः स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर संकल्प मंत्र लेते हैं। इसके पश्चात देवताओं, गुरुजन, अस्त्र-शस्त्र, अश्व आदि के यथाविधि पूजन की परंपरा है।

कुआँ (कूप)

 कुआँ (कूप) मिट्टी या चट्टानों को काटकर कृत्रिम खोदाई या छेदाई से जब कोई द्रव, विशेषतया पानी, निकलता है तब उसे कुआँ कहते हैं। कुछ स्थानों के कुओं से पानी के स्थान पर पेट्रोलियम तेल भी निकलता है। कुएँ कई प्रकार के होते हैं। यह उनकी खुदाई, गहराई, मिट्टी या चट्टान की प्रकृति और पानी निकलने की मात्रा पर निर्भर करता है। कुएँ छिछले हो सकते हैं या गहरे। गहरे कुओं को उस्रुत कुआँ कहते हैं, यद्यपि यह नाम ग़लत है। साधारणतया कुएँ वृत्ताकार तीन से पंद्रह फुट, या इससे अधिक, व्यास के होते हैं। इनकी गोल दीवारें, जिन्हें कोठी कहा जाता है, ईटों की बनाई जाती हैं और उनके नीचे तल पर लकड़ी या प्रबलित कंक्रीट या चक्का होता है। ऐसे ही कुओं का पानी पीने या सिंचाई के काम आता है। छिछले कुओं का पानी पीने योग्य नहीं समझा जाता, क्योंकि उनके धरातल के पानी से दूषित हो जाने की आशंका रहती है। पीने के पानी के लिए गहरे कुएँ अच्छे समझे जाते हैं। उनका पानी शुद्ध रहता है और अधिक मात्रा में भी प्राप्त होता है।

गहराई


कुएँ साधारणतया 50 से लेकर 100 फुट तक गहरे होते हैं, पर अधिक पानी के लिये 150 से 500 फुट तक के गहरे कुएँ खोदे गए हैं। कुछ विशेष स्थानों में तो कुएँ छह हज़ार फुट तक गहरे खोदे गए हैं और इनसे बड़ी मात्रा में पानी प्राप्त हुआ है। ऑस्ट्रेलिया में चार सौ फुट से अधिक गहरे कुएँ खोदे गए हैं। इनसे एक लाख से लेकर एक लाख चालीस हज़ार गैलन तक पानी प्रतिदिन प्राप्त हो सकता है।

नींव

जिन नदियों या नालों के तल की मिट्टी क्षरणशील होती है उनमें पुलों के पायों या अन्य निर्माण की बुनियाद भी कुंओं पर रखी जाती है। कुएँ वाली नींव में चार भाग होते हैं-
  1. चक्क:- जिसमें कटाई कोर भी सम्मिलित है,
  2. कोठी
  3. डाट तथा
  4. कूप-ढक्कन
चक्क
चक्क कोठी की नींव और काटने की कोर का काम देता है। छोटे कुओं के लिए यह काठ का बना होता है पर गहरी नींव के लिए यह इस्पात अथवा प्रबलित कंक्रीट का बना होता है। उनके कटाईकोर मृदु इस्पात की पट्टी और कोनियों से बनाए जाते हैं। चक्क के आभ्यंतर फलक की ढाल ऊर्ध्वाधर 25-35 के बीच होती है।
कोठी
कुएँ की दीवार को कोठी कहते हैं। नीचे से ऊपर तक यह पूर्णतया सीधी (ऊर्ध्वाधर) होनी चाहिए। व्यवहार में महत्तम झुकाव 1/100 तक रह सकता है। कोठी पक्की चुनाई या कंक्रीट की हो सकती है।
डाट
जब कुएँ की अंतिम धँसान पूरी हो जाती है तब पेंदे को साफ़ कर लेते है और जल के भीतर कंक्रीट की डाट लगा देते हैं। डाट चक्क के ऊपर लगभग दो फुट तक फैली रहती है।
कूप ढक्कन
कुएँ का ढक्कन दो फुट मोटी प्रबलित कंक्रीट की शिला का होता है। वह कुएँ पर रखा जाता है और पाए के आधार पर कार्य करता है। ढक्कन और तले के बीच का भाग रेत से भर दिया जाता है।

कुओं का आकार


कुआँ से पानी भरते महिला और बच्चे
कुओं के आकार साधारणतया एकहरा वृत्ताकार, दोहरा अष्टभुजीय, दोहरा D- आकार, द्विवृत्ताकार, आयताकार या एक से अधिक गोलाकार, एक दूसरे के सन्निकट होते हैं।
  • एकहरा वृत्ताकार कुआँ काफ़ी मज़बूत होता है। इसे बनाने में सुगमता और धँसाने में अत्यधिक सरलता होती है। धँसाने में जो रुकावट हो उसको सरलता से दूर किया जा सकता है और झुकाव पर नियंत्रण रखा जा सकता है। यदि कंक्रीट का बना हो तो यह सस्ता भी होता है।
  • दोहरा अष्टभुजीय आकार गहरे कुओं अथवा मेहराबदार स्तंभ के लिये उपयुक्त होता है। यदि मिट्टी कड़ी हो तो ऐसे स्थान में ऐसे ही कुएँ खोदे जा सकते हैं।
  • दोहरे D-आकार के कुएँ बालू या बुलई मिट्टी के लिए दोहरे अष्टभुजीय कुओं के अच्छे होते हैं।
  • छिछले कुओं के लिए आयताकार अच्छा रहता है।
यदि पाए की लंबाई ऐसी हो कि स्थान पर दोहरा वृत्ताकार कुआँ न बैठे तो एक से अधिक वृत्ताकार कुएँ अलग-अलग बनाए जाते हैं। दो वृत्ताकार कुओं को परिधियों के बीच कम से कम चार फुट की दूरी रहनी चाहिए।

निर्माण सामग्री

कुएँ की निर्माण सामग्री में चार वस्तुएँ होती हैं :
  1. लकड़ी- इसका उन्हीं कुओं में प्रयोग होता है जो बहुत छिछले, प्राय 8 से 10 फुट गहरे होते हैं।
  2. इस्पात- बड़े आकार के गहरे कुएँ इस्पात के बनाए जा सकते हैं। यह वृत्ताकार होते हैं और बीच के बलयाकार स्थान में कंक्रीट भरा जाता है ताकि बोझ बढ़ जाय। इसकी धँसाई में समय कम लगता है पर खर्च अधिक होता है।
  3. पक्की चिनाई- साधारणतया ईटों की चिनाई सीमेंट के मसाले से की जाती है। जिस क्षेत्र में प्राय: भूचाल आते रहते हैं वहाँ संपीडन और तनाव के प्रतिबल बहुत अधिक हो जाते हैं, इसलिये ईटं की चिनाई को इस्पात और प्रबलित कंक्रीट से दृढ़ करना पड़ता है।
  4. कंक्रीट- कुएँ के निर्माण में कंक्रीट अधिकता से प्रयुक्त होता है। अत्यधिक भूचाल आने वाले स्थलों पर कंक्रीट का कुंआँ बनाना अधिक सस्ता पड़ता है।

कुएँ का अभिकल्प

इसमें तीन बातें निश्चय की जाती हैं:
  1. कुएँ की गहराई,
  2. उसकी आकृति तथा
  3. कोठी की मोटाई।
नींव के नीचे तथा आसपास की भूमि पर ऊपरी निर्माण के बोझ के स्थानांतरण के ढंग पर यह निश्चय किया जाता है कि तल की सबसे गहरी हो सकने वाली कटाई से कितने नीचे कुएँ की नींव रखी जाए। कुएँ का आकार ऊपरी निर्माण तथा भूमि स्तर के प्रकार पर निर्भर करता है। बचत के लिए उसका आकार छोटे से छोटा और ऊपरी निर्माण के अनुकूल होना चाहिए। कोठी का डिजाइन ऐसा किया जाता है कि वह सर्वाधिक गहरे कटाव के तल पर बोझों और बलों से उत्पन्न अधिकतम प्रतिबल सह सके। अचल भार, चल भार, भूकंप तथा जलधाराजन्य क्षैतिज वलों, गाड़ियों, भूकंपों और वायु बलों इत्यादि से यह प्रतिबल उत्पन्न होता है।

कुएँ की गलाई

इसका उद्देश्य कुओं को ठीक अवस्था में रखना है। कुएँ की ठीक गलाई के लिये निर्माणकाल में ही बराबर सावधान रहने की आवश्यकता है। ऊर्ध्वाधरता को बराबर जाँचते रहना चाहिए, जिससे कुआँ साहुल से अधिक बाहर न चला जाए। कुएँ जितना अधिक नीचे गलाए जाते हैं उतना ही अधिक उनका स्थायित्व होता है।

Wednesday 10 April 2013

आप सभी को विक्रम संवत २ ० ७ ० के आगमन
की हार्दिक शुभकामनाएँ हिन्दु तन मन हिन्दु
जीवन रग रग हिन्दु है हिन्दु मेरा परिचय है मै
अखिल विश्व का गुरु महान देता विद्या का अमर
दान मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे
वेदों की ज्योति प्रखर हिन्दु मेरा परिचय है मै
एक बिन्दु परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु समाज
मेरा इसका संबन्ध अमर मै व्यक्ति और यह है समाज
इससे मैने पाया तन मन इससे मैने पाया जीवन
मेरा तो बस कर्तव्य यही कर दू सब कुछ इसके अर्पण
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु है हिन्दु
मेरा परिचय है,नव संवत्सर पर हार्दिक मंगल
कामनाएँ !प्रभु कृपा से आप के आयु,आरौग्य,ऐश्वर्य
की अभिवृद्धि हो

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा



सृष्टि रचना का पहला दिन : इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की।

वासंतिक नवरात्र प्रारंभ : शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है

प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिये चुना।

विक्रम संवत् का नवीन दिवस : इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर भारत में विक्रमी संवत प्रचलित हुआ

गुरू अंगददेव प्रगटोत्सव : सिख परंपरा के द्वितीय गुरू का जन्म दिवस।

युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन : युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ।

संत झूलेलाल जन्म दिवस : सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।

आर्य समाज स्थापना दिवस : समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना।

पापा फिर से आ जाओ न

थाम के अंगुली मुझे चलाना, मंदिर की उन सीढियों पर ले जाना
गिरने से वो मुझे बचाना, और मेरे जरा सा थकने पर
झट से मुझे गोद में उठाना, पापा सब याद है न
मै आज भी डगमगा रहा हूँ, थामने को मुझे हाथ बढाओ न
पापा फिर से आ जाओ न, चोट लगी थी मेरे सर पर
शायद खून भी निकला था
पर दर्द उस चोट का
पापा चेहरे पर आपके दिखा था
मुझको हँसाने की खातिर
वो सीढियों पर हाथ मारना
और अपने रुमाल से मेरे आसुओ को पोछना
पापा मै अब भी रोता हूँ
आसू पोछने आ जाओ न
पापा फिर से आ जाओ न
छुप जाऊं फिर से सीने में, वो मजबूत सहारा बन के आओ न

जिंदगी के पाँच कड़वा सच

!! जिंदगी के पाँच कड़वा सच , मानो या ना मानो !!
पहला सच--माँ के सिवाय कोई दूसरा प्यार करने वाला नहीं ....
दूसरा सच --गरीब का कोई दोस्त नहीं...!
तीसरा सच-- लोग अच्छी सीरत को नहीं अच्छी सूरत को तरजीह देते हैं ...!
चौथा सच -- इज्जत सिर्फ पैसे की हैं इंसान की नहीं ...!
पाँचवा सच -- इंसान जिस शख्स के लिए दिल से दुआमाँगता हो वही शख्स दुःख दर्द देता है...!

कडवा सच :

जिंदगी का एक कडवा सच :
तिजोरियाँ भरते हैं उम्र भर के लिये लोग ,
मगर अफसोस मौत का फरिश्ता रिश्वत नहीं लेता ।
दोस्तो पैसा सिर्फ एक वस्तु है जो उपयोग के लिये होती हैं । जो पैसे को वस्तु की बजाये सुख चैन या जिंदगी समझने लगते हैं तो याद रखें कि
पैसा उनके लिये चीजें तो खरीद सकता है पर मन का सुख , संतुष्टि, चरित्र , साँसे नहीं ।
पैसा जीने के लिये उपयोग करें ना कि सिर्फ पैसे के लिये ही जीयें ।

क्या मृत्यु समय का मृत्युपूर्व पूर्वाभास होता है ?

कई बार कई बुजुर्ग व्यक्ति अपनी मृत्यु से सम्बंधित ऐसी बाते कहते है जिससे लगता है कि उन्हें अपनी मृत्यु के समय का पूर्वाभास हो गया है लेकिन उनकी बातों पर ये समझकर कि बुढापे की बिमारियों या सठिया जाने की वजह से ये ऐसा कह रहे है उनकी बाते परिजन अनसुनी कर देते है लेकिन जब उस व्यक्ति की मौत होती है और उसके द्वारा कही गयी बाते सत्य निकलती है तब चर्चा चलती है कि फलां व्यक्ति को अपनी मौत का पूर्वाभास हो गया था लेकिन इस बात पर परिजनों के अलावा जो व्यक्ति वहां मौजूद होते है वे तो सच मानते है लेकिन सुनने वाले इस बात को अपने परिजन को महिमा मंडित करने की चाल बताकर खारिज कर देते है | इसी तरह की एक घटना का जिक्र मै यहाँ कर रहा हूँ जो कभी कभी मुझे सोचने पर मजबूर कर देती है कि कुछ लोगो को क्या मृत्यु के समय का पूर्वाभास हो जाता है ?

जाट समाज ने बढ़ाया देश का गौरव


देश की सुरक्षा एवं विकास में जाट समुदाय का उल्लेखनीय योगदान रहा है। जाट समाज के युवा खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ाया है। जाट सपूत देश की आन-शान के लिए अपनी कुर्बानी देते रहे हैं। जाट हमेशा से जुझारू रहे हैं। जाटों ने सेना में भर्ती हुये और जाटों ने रणक्षेत्र में अपनी बहादुरी को सिद्ध किया और वास्तविक क्षत्रियकहलाये ।
जाट आज खेल के मैदान में छाए हुए है । क्रिकेटकी पिच से लेकर बॉक्सिंग की रिंग तक । कुश्ती के अखाड़ा से लेकर बैडमिंटन के कोर्ट में । ये जाट खिलाड़ी न सिर्फ भारत का झंड़ा ऊंचा कर रहे है बल्कि जाटों को खुद पर गर्व करने काएक और मौका दे रहे है।
जाट प्रसिद्ध खिलाड़ी, भारत के धाकड़ बल्लेबाज़ वीरेंदर सहवाग, बॉक्सिंग स्टार विजेंद्र, ममता ख़रब महिला हॉकी टीम की कप्तान, बैडमिंटन की चैंपियन खिलाड़ी साइना नेहवाल, दिल्ली के प्रदीप सांगवान, प्रतिभाशाली महिला एथलीट कृष्णा पूनिया, दारा सिंह अपने जमाने के एक कुशल अभिनेता व कुश्ती के प्रसिद्ध खिलाड़ी रहे हैं।
दारा सिंह खुद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई नामी-गिरामी पहलवानों को कुश्ती में हरा चुके हैं। इनमें पहलवानी के इतिहास के कई बड़े नाम शामिल हैं जैसे स्टानिलॉस जिबिस्को, लू थेज और यूएस के कई पेशेवर पहलवान। साल 1996 में दारा सिंह को रेसलिंग ऑब्जर्वर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया।
भारत के इतिहास


में सूरजमल को 'HINDUSTAN का प्लेटो' कहकर भी सम्बोधित किया गया है।
भारतीय राज्य व्यवस्था में सूरजमल का योगदानसैद्धान्तिक या बौद्धिक नहीं, अपितु रचनात्मक तथा व्यवहारिक था। जाट-राष्ट्र का सृजन एवं पोषण एक आश्चर्यजनक सीमा तक इस असाधारण योग्य पुरुष का ही कार्य था।
बहुत समय तक जाटों पर लुटेरा और बर्बर होने का कलंक लगा रहा। पुरानी कहावत अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा और पढ़ा जाट खुदा जैसा........
भारत में पहली बार जाट जाति से चौ० चरणसिंह प्रधानमन्त्री बने हैं ।
SIRछोटूराम का जन्म 24 नवम्बर 1881 में झज्जर के छोटे से गांव गढ़ी सांपला में बहुत ही साधारण जाट परिवार में हुआ (झज्जर उस समय रोहतक जिले का ही अंग था)। छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था।
क्षत्रिय शिरोमणि वीर श्री बिग्गाजी महाराज- गौमाता के नाम से पूजी जाने वाली गाय जिसके शरीर में तैंतीस करोड़ देवी देवता निवास करते हैं कि रक्षा दुष्ट चोरों से करने के लिए भगवान ने इस देश की सबसे पवित्र कौम जाट के घर
वीर श्री बिग्गाजी महाराज के रूप में अवतार लिया और गायों की रक्षा की।
लोक देवता तेजा जी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहर जी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था।तेजाजी की गौ रक्षक एवं वचनबद्धता की गाथा लोक गीतों एवं लोक नाट्य में राजस्थान के ग्रामीण अंचल में श्रद्धाभाव से गाई व सुनाई जाती है।
महाराजा नाहर सिंह बल्लभगढ़ रियासत के राजा तथा तेवतिया खानदान से थे जो 1857 में देश कीआजादी के लिए शहीद होने वाले पहले राजा थे ।
महाराजा महेन्द्र प्रताप मुरसान-अलीगढ़ (उ.प्र.) रियासत के राजा थे और ठेनूवा वंश से सम्बन्धित थे । जिन्होंने देश की आजादी के लिए रियासत की बलि देकर 33 साल विदेशों में रहकर देश की आजादी के लिए अलख जगाई ।
जाट शासकों में महाराजा सूरजमल (शासनकाल सन 1755 से सन् 1763 तक) और उनके पुत्र जवाहर सिंह (शासन काल सन् 1763 से सन् 1768 तक ) ब्रज के इतिहास में बहुत प्रसिद्ध हैं ।
जाट रेजीमेंट जाट रेजिमेंट भारतीय सेना की एक पैदल सेना रेजिमेंट है| यह सेना की सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा वीरता पुरस्कार विजेता रेजिमेंट है| जाट सपूत देश की आन-शान के लिए अपनी कुर्बानी देते रहे हैं।
‘राज करेगा जाट’ । मुझे जाट होने पर गर्व है।

उम्र 18 और 21 वर्ष क्यों

विवाह और मताधिकार की उम्र में अंतर क्यों?मताधिकार की उम्र 18 और विवाह के लिये 21 वर्ष क्यों निर्धारित की गई है?विवाह और मताधिकार की उम्र में अंतर क्यों?मताधिकार की उम्र 18 और विवाह के लिये 21 वर्ष क्यों निर्धारित की गई है?
इसका मतलब ये है कि सरकार भी मानती है अट्ठारह साल मे आदमी देश तो संभाल सकता है बीबी नही।
मेरी मंशा शादीशुदा लोगों से कुंवारों को देश संभालने के मामले मे ज्यादा योग्य साबित करने की नही हैं।हा हा हा।मैं तो नही चाहता मगर अब आप लोग ही बताईये सरकार ऐसा करके क्या साबित करना चाह्ती है?
भाइयो मैं कोई बड़ा लेखक या कवि तो हूँ कोणी जिसा
तुट्या फुट्य मन्ने आवै......

कोई गलती हो माफ़ कर दियो .आप सभी मोजूद सदस्यों
से सहयोग की अपेक्षा रखते हुए ये छोटी -

छोटी सी भेंट आप लोगों
के सामने परोस रहा हूँ आशा करता हूँ आपको पसन्द आएगी !

नव वर्ष और नवरात्र की हार्दिक बधाई. और शुभकामनाए.

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!!!!

भारतीय कैलेंडर सबसे प्रमाणिक और वैज्ञानिक कैलेंडर है जिसका नववर्ष गुडीपडवा से प्रारंभ होता है. भारतीय कैलेंडर में अधिक मास का महिना होता है, इसका प्रमाण 2012 और 2013 में प्रत्यक्ष है कि हमारे यहाँ वर्षा ऋतु एक माह विलम्ब से प्रारंभ हुई और अभी ठण्ड भी दिसम्बर माह में जितनी हमेशा होती है उतनी नहीं हुई, इसका मुख्य कारण यही है हमारे भारतीय कैलेंडर में ऋतुओं के संचालन का वैज्ञानिक प्रमाण है. अंग्रेजी कैलेंडर में ‘अधिक मास’ का कोई स्थान नहीं है और इसलिए ऋतुओं के संचालन में अंग्रेजी कैलेंडर से कोई मार्गदर्शन प्राप्त नहीं होता है. हमें हमारे ऋषि-मुनियों के द्वारा प्रदत्त काल-गणना के कैलेंडर पर गर्व होना चाहिए. अंग्रेजी कैलेंडर के अंतिम दिन में व नव वर्ष के प्रारंभ में हम एक दूसरे को बधाई तो दे सकते हैं परन्तु काल-गणना का प्रमाणिक व वैज्ञानिक कैलेंडर, भारतीय कैलेंडर है जो वर्ष प्रतिपदा (चैत्र मास) से प्रारंभ होता है.