Friday 31 May 2013

कांकड़ !

कांकड़ यानी गांव की सीमा. गांव की बाहरी सीमा कांकड़ कहलाती है. कांकड़ पर गांव की सीमा समाप्‍त हो जाती है और ठीक वहीं से दूसरे गांव की रोही शुरू हो जाती है. हर गांव की एक सीमा होती है जहां से उसके क्षेत्र की शुरुआत मानी जाती है इसी सीमा या लाइन को कांकड़ कहते हैं. थार के गांवों में इस सीमा का बहुत महत्‍व रहा है. अनेक रिवाज कांकड़ से जुड़े हैं. तो यही है कांकड़ और ग्रामीण भारत विशेषकर थार में उसका महत्‍व. हर गांव की कांकड़ अपने में अनेक विशेषताएं समेटे होती है. यही कारण है कि प्रत्‍येक गांव की कोई विशेषता होती है, एक पहचान होती है. उनके रीति रिवाज, संस्‍कृति, गुवाड़ें सब कुछ न कुछ अलग होती हैं. विविधिता होती है. गांव की मजबूत भींते और उनके गिरते लेवड़े अनेक कहानियां कहते हैं. इतिहास के सबसे बड़े मूक साक्षी हैं हमारे गांव.गोदरास को जानना है तो शुरुआत कांकड़ या शुरुआत से ही करनी होगी.

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