Wednesday 15 May 2013

भैरोंसिंह शेखावत

                                                                   भैरोंसिंह शेखावत
                                                             (23 अक्टूबर, 1923-15 मई, 2010)


भैरोंसिंह शेखावत (; जन्म- 23 अक्टूबर, 1923, सीकर, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 15 मई, 2010, जयपुर, राजस्थान) भारत के ग्यारहवें उपराष्ट्रपति और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री थे। वे राजस्थान के राजनीतिक क्षितिज पर काफ़ी लम्बे समय तक छाये रहे। राजस्थान की राजनीति में उनका जबर्दस्त प्रभाव था। उनके कार्यकर्ताओं ने उन पर एक जोरदार नारा भी दिया, जो इस प्रकार था- "राजस्थान का एक ही सिंह, भेंरोसिंह....., भेंरोसिंह.....। यह नारा बहुत लम्बे समय तक गूँजता रहा था। राजस्थान में जब वर्ष 1952 में विधानसभा की स्थापना हुई थी, तब भैरोंसिंह शेखावत ने अपना भाग्य आजमाया और विधायक बने। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और सफलताएँ अर्जित करते हुए विपक्ष के नेता, फिर मुख्यमंत्री और उपराष्ट्रपति के पद तक पहुँच गए। 'भारतीय जनता पार्टी' के सम्माननीय नेताओं में से वे एक थे।
जन्म तथा परिवार

भैरोंसिंह शेखावत का जन्म 23 अक्टूबर, 1923 को धनतेरस के दिन ब्रिटिश कालीन सीकर (राजस्थान) में हुआ था। ये एक मध्यम वर्गीय राजपूत[1] परिवार से सम्बन्ध रखते थे। इनके पिता का नाम देवीसिंह और माता बन्ने कँवर थीं। शेखावत जी के पिता एक स्कूल में अध्यापक पद पर कार्यरत थे। भैरोंसिंह शेखावत के तीन भाई थे, जिनके नाम थे- विशन सिंह, गोवर्धन सिंह और लक्ष्मण सिंह
शिक्षा तथा विवाह
भैरोंसिंह शेखावत ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही प्राप्त की। उन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा गाँव से 30 किलोमीटर दूर स्थित जोबनेर से प्राप्त की। यहाँ पढ़ने आने के लिए भैरोंसिंह शेखावत को प्रतिदिन पैदल जाना पड़ता था। हाईस्कूल करने के पश्चात उन्होंने जयपुर के 'महाराजा कॉलेज' में दाखिला ले लिया। उन्हें प्रवेश लिए अधिक समय नहीं हुआ था कि पिता का देहांत हो गया। अब शेखावत जी पर परिवार के आठ प्राणियों के भरण-पोषण का भार आ पड़ा। इस कारण उन्हें हल हाथ में उठाना पड़ा। बाद में पुलिस की नौकरी भी की, लेकिन उसमें मन नहीं रमा और त्यागपत्र देकर वापस खेती करने लगे। वर्ष 1941 में भैरोंसिंह शेखावत का विवाह सूरज कँवर से कर दिया गया। इनकी पुत्री का नाम रतन कँवर है।

राजनीति में प्रवेश

इस समय राजस्थान के गठन की प्रक्रिया चल रही थी। भैरोंसिंह शेखावत जनसंघ के संस्थापक काल से ही जुड़ गये और 'जनता पार्टी' तथा 'भाजपा' की स्थापना में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। वर्ष 1952 में वे दस रुपये उधार लेकर दाता रामगढ़ से चुनाव के लिए खड़े हुए। इस समय उनका चुनाव चिह्न 'दीपक' था। इस चुनाव में उन्हें सफलता मिली और वे विजयी हुए। इस सफलता के बाद उनका राजनीतिक सफर लगातार चलता रहा। वे दस वार विधायक, 1974 से 1977 तक राज्य सभा के सदस्य रहे।

राजनीतिक सफर

अपने लम्बे राजनीतिक सफर में भैरोंसिंह शेखावत तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री, तीन बार नेता प्रतिपक्ष और भारत के ग्यारहवें उपराष्ट्रपति भी रहे।

मुख्यमंत्री
22 जून, 1977 से 15 फ़रवरी, 1980 तक
4 मार्च, 1990 से 15 दिसम्बर, 1992 तक
15 दिसम्बर, 1992 से 31 दिसम्बर, 1998 तक
नेता प्रतिपक्ष
15 जुलाई, 1980 से 10 मार्च, 1985 तक
28 मार्च, 1985 से 30 दिसम्बर, 1989 तक
8 जनवरी, 1999 से 18 अगस्त, 2002 तक
उपराष्ट्रपति
भैरोंसिंह शेखावत जी 12 अगस्त, 2002 को भारत के ग्यारहवें उपराष्ट्रपति बने। उनका कार्यकाल 19 अगस्त, 2002 से 21 जुलाई, 2007 तक रहा था। वर्ष 2007 में वे राष्ट्रपति चुनाव में पराजित हो गए थे।

लोकप्रियता

शेखावत जी एक जन नेता थे। जनता के बीच उन्हें बहुत लोकप्रियता प्राप्त थी। उन्होंने राजस्थान के दस अलग-अलग स्थानों से विधान सभा चुनाव लड़े और उनमें से आठ में विजयश्री का वरण किया। वे एक से ग्यारह तक की राजस्थान विधान सभाओं में से मात्र पाँचवीं में नही थे। अर्थात दस विधान सभा चुनवों में वे जीत कर गये थे। आपात काल के समय भैरोंसिंह शेखावत ने उन्नीस माह तक जेल की सज़ा भी भोगी। विधायक दल के नेता तो वे कई बार रहे। 'भारतीय जनता पार्टी' में अनेकों पदों पर रहते हुए वे प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और किसान मोर्च के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने थे।

ग़रीबों के सहायक

आजीवन राष्ट्रहित में काम करने वाले जननेता शेखावत जी ग़रीबों के सच्चे सहायक थे। उन्होंने एक बार कहा था कि- "मैं गरीबों और वंचित तबके के लिए काम करता रहूँगा ताकि वे अपने मौलिक अधिकारों का गरिमापूर्ण तरीके से इस्तेमाल कर सकें।" देश के अत्यंत ग़रीब लोगों को भोजन मुहैया कराने के लिए चलाई जाने वाली "अंत्योदय अन्न योजना" का श्रेय उन्हीं को जाता है। उनके इस कदम के लिए तत्कालीन विश्व बैंक के अध्यक्ष रॉबर्ट मैक्कनमारा ने उनकी सराहना करते हुए उन्हें भारत का रॉकफ़ेलर कहा था। अपने जीवन काल की एक अन्य चर्चित घटना "रूप कंवर सती कांड" के दौरान अपनी लोकप्रियता और राजनीतिक कैरियर की परवाह न करते हुए भैरोंसिह शेखावत ने 'सती प्रथा' के विरोध में आवाज़ बुलंद की थी।

योजनाएँ
शेखावत जी का राजनीतिक कार्यकाल गरीबों की बेहतरी और विकास को समर्पित रहा था। ग़रीबों की भलाई के लिए उन्होंने कई योजनाएँ क्रियांवित की थीं, जैसे-

'काम के बदले अनाज योजना'
'अंत्योदय योजना'
'भामाशाह योजना'
'प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम'
अपनी योजनाओं के माध्यम से शेखावत जी ने ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलने का जो सपना देखा था, वह आज काफ़ी हद तक साकार हो रहा है। राजनीति के इस माहिर खिलाड़ी ने सरकार में रहते हुए ऐसे ना जाने कितने काम किये, जिसका उदाहरण आज भी दिया जाता है। उनके द्वारा शुरू किये गये 'काम के बदले अनाज' योजना की मिसाल दी जाती है। बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या के नियंत्रण को लेकर भी उन्होंने अभिनव प्रयोग करते हुए अधिक संतानें होने पर पंचायतों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया था।

निधन

राजस्थान की राजनीति में जोरदार प्रभाव रखने वाले भैरोंसिंह शेखावत का निधन 15 मई, 2010, जयपुर में हुआ। उन्हें बेचैनी और साँस लेने में तकलीफ की वजह से जयपुर के 'सवाई मानसिंह अस्पताल' में भर्ती करवाया गया था। यहाँ वे जीवन रक्षक प्रणाली पर रखे गए थे। शनिवार के दिन सुबह 11 बजकर, 10 मिनट पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। उनका पार्थिव शरीर सबसे पहले भाजपा की प्रदेश इकाई के मुख्यालय में लाया गया था। पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन के लिए स़डकों पर हज़ारों लोग इकट्ठा थे। जयपुर की स़डकों पर "भैरोंसिंह अमर रहे" और "राजस्थान का एक ही सिंह, भैरोंसिंह.. भैरोंसिंह" की गूँज सुनाई दे रही थी।

आजीवन 'भाजपा' को समर्पित भैरोंसिंह शेखावत दलगत राजनीति से सदैव दूर रहे। ना केवल मुख्यमंत्री के रूप में बल्कि उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए भी उन्होंने सभी पार्टियों के लोगों से चाहे वे काँग्रेस के हों या साम्यवादी दल के, सभी के साथ समान व्यवहार किया। उनके जीवन का एक और तथ्य उल्लेखनीय है कि जब उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ा तो पहले 'भाजपा' की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था। शेखावत जी ने पाँच वर्ष के कार्यकाल में अपने गरिमापूर्ण व्यवहार के कारण राज्य सभा में सभी पार्टियों से जो संबंध बनाये रखा, वह अपने आप में अनुकरणीय है।

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